एक ही रात में कैसे हुआ आष्टा में आठ मंदिरों का निर्माण
सिवनी / आष्टा का प्रसिद्ध माता महाकाली का मंदिर जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर धारना धरमकुंआ मार्ग पर स्थित है। 13 वीं सदी में निर्मित मां काली का प्राचीन मंदिर सिवनी जिले में ही नहीं अपितु आसपास के जिले, प्रदेश व देश में प्रसिद्ध है। जहां शारदीय व चैत्र नवरात्र पर्व पर अलसुबह से लेकर देर शाम तक मां के दर्शन करने के लिए भक्तों को तांता लगा रहता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इनका निर्माण देवताओं द्वारा एक ही रात में कराया गया था और सुबह हो जाने पर मंदिरो का निर्माण रुक गया इसलिए शेष मंदिरों का निर्माण कार्य अधूरा ही रह गया। किन्तु इतिहासकारों के अनुसार 13 वीं सदी में देवगिरी के यदुवंशी राजा रामचंद्र और महादेव के मंत्री हिमाद्री के द्वारा पूरे विदर्भ क्षेत्र में 100 से अधिक मंदिरों का निर्माण कराया गया था इनमें से 8 मंदिर इस ग्राम में बनाए गए थे इसीलिए इस गाँव का नाम आष्टा पड़ा। आष्टा का माता काली का मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहाँ दूर-दूर से हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आते हैं और उनकी मन्नतें भी माता काली के प्रताप से पूर्ण होने के साथ ही मां भक्तों के कष्टों का हरण भी करती है। ऐतिहासिक माता काली के दरबार में वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्व पर भक्तों द्वारा कलश प्रज्वलित किए जाते हैं। और पूरे नौ दिन मां के दरबार में अखंड ज्योति का प्रकाश जगमगाता रहता है। ग्रामीण मान्यता के तहत खप्पर भी स्थापित किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर्व पर भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर कलश स्थापित करते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मां के दरबार में सिवनी जिले के साथ ही म.प्र. व अन्य प्रांतों से भी भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्र पर्व में मां के दरबार में भक्तों का तांता लगा हुआ है। आस्था और विश्वास के चलते श्रद्धालु यहाँ नौ दिनों तक निवासरत रहते हुए मां की सेवा में लगे रहते है।
मां की कृपा से हुआ मंदिरो का निर्माण
जनश्रुति के अनुसार 13वीं शताब्दी में आष्टा के मां काली के मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ है। कहा जाता है कि देवी मां की कृपा से बड़े-बड़े पत्थरों से विशाल मंदिर रात में स्वतः तैयार हो रहा था। लेकिन इसी दौरान मंदिर पर लोगों की नजर पड़ गई और मुर्गे की बांग पड़ जाने से मंदिर का काम अधूरा रह गया। बड़े-बड़े पत्थर की शिला आज भी मंदिर के आसपास बिखरी हुई है।
आठ मंदिरों के कारण पड़ा आष्टा नाम
इतिहासकारों के अनुसार 13वीं सदी में विदर्भ के देवगिरी यादव राजाओं का राज्य यहाँ तक फैला हुआ था। यादव राजा महादेव व रामचंद्र के मंत्री हिमाद्री ने यहाँ आठ मंदिरों का निर्माण वास्तुकला की एक विशेष शैली से कराया था। आठ स्थानों पर मंदिर का निर्माण होने के कारण बाद में इस गाँव का नाम आष्टा पड़ गया। इनमें से अधिकांश मंदिर ध्वस्त हो गए हैं जिनकी मरम्मत कर जीर्णोद्धार कार्य किया गया। वर्तमान में मां के दरबार में दो मंदिर तथा एक मंडप मौजूद हैं। मंदिर के गर्भगृह में मूर्ति नहीं है। मंदिर की पिछली दीवार से मिली हुई उत्तर मुखी मां काली की पाषाण मूर्ति स्थापित है। तथा मंदिर के चौकोर पत्थरों की जुड़ाई लोहे व शीशे की छड़ों से हुई है। पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर लोहे के शिकंजे से कसा गया है ताकि उनका भार संतुलित रहे। जिससे मंदिर अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय हो गया है।
गांव में प्रतिमा स्थापना है वर्जित
आष्टा के ऐतिहासिक मां काली के दरबार के गाँव आष्टा में दोनों नवरात्र पर्व में किसी भी स्थान अथवा निजी तौर पर घरों में तक प्रतिमा स्थापना नहीं होती है। यहाँ के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पूर्व यहाँ प्रतिमा स्थापना का प्रयास किया गया था। किन्तु प्रतिमा खंडित हो गई तथा कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। तब से आष्टा में नवरात्र पर्व में प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती। सभी गाँव के भक्त मां काली के दरबार में पूजन-अर्चना वर्षों से करते चले आ रहे हैं।
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